Man re kahan firat baurana
Man re kahan firat baurana ("mind" where are you wandering).
"mind" is used as a metaphor for oneself in this Bhajan.
मन रे कहाँ फिरत बौराना
अबहूँ सीख सिखावन मेरो, चोला भयो है पुराना
मानुष जनम पदारथ पाए, भजत ना क्यों भगवाना
अंत काल पामर पछ्तैहें, यमपुर जबहीं ठिकाना
कियो करार भजन करिबे को, सो बात भूलना
केश सफ़ेद भयो सब तेरो, पहुंचा यम परवाना
नारी नेह देह से छाड़ो, नैनन जोती झपलाना
कुल परिवार बात नहीं पूछत कहत बात कटूलाना
बहुत कमाई असोच भये है, ले ले धरात खजाना
‘लक्ष्मीपति’ नर राम भजन बिनु, माटी मोल बिकाना